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अखिल राजस्थान जयकार समाज विकास संस्था

जयकार समाज के विकास हेतु संस्था के गठन की चर्चा भीलवाडा में श्री दुर्गालाल जी छमंगा कालियास जिला भीलवाडा के निवास पर श्री बजरंग लाल जी जूटक देराठू जिला अजमेर व श्री छगनलाल जी सगदार हमीरगढ जिला भीलवाडा एवं समाज के सदस्यों द्वारा 1989-90 में की गई। संस्था में सेवा कार्य करने हेतु मुझ दुर्गालाल बारेठ (हाळीमंगा) को बुलाकर जिम्मेदारी दी गई। संस्था के विधिवत गठन व चुनाव हेतु पुष्कर जिला अजमेर में राजस्थान से जयकार समाज के गणमान्य महानुभाव जिनमें श्री बजरंगलालजी जूटक देराठूं - अजमेर, श्री गोविन्द रामजी गेगावत कोशाणा- जोधपुर, श्री मदनलाल जी चौधरी भट्याणी- अजमेर, श्री शंभूप्रसाद जी चारण आमली - भीलवाडा , श्री भैरूलाल जी खरेलवा भोपालसागर-चित्तौडगढ, श्री दुर्गालाल जी बारेठ (हाळीमंगा) बोरडा - भीलवाडा, श्री किशनलालजी खेड छापरी- चित्तौडगढ, श्री मिश्रीलालजी सिसोदिया मौकाला-नागौर, श्री बाबूलालजी जांगड ईडवा-नागौर, श्री बाबूलाल जी गोरेर बासनी- नागौर, श्री गोपालजी लालावत सरेरी-भीलवाडा, श्री कानजी चारण लाहरवाडा-अजमेर, श्री गजानन्दजी जूटक देरांठू-अजमेर, श्री प्रभूलाल जी सोपतका कोटा, श्री प्रभूदान जी बून्दी, श्री रामानन्दजी नुवां अजमेर, श्री मांगीलालजी पादवा कोटा, व सैंकडों गणमान्य समाजजन उपस्थित रहे व गहन चर्चा के बाद सर्वसम्मति से संस्था का गठन किया गया।संस्था का नाम अखिल राजस्थान जयकार (ढोली) समाज विकास संस्था रखा गया। प्रदेश कार्यालय प्रदेश महासचिव का निवास व उसके द्वारा निर्धारित स्थान पर रखा गया। संस्था के चुनाव किये गये जिसमें श्री बजरंगलाल जी जूटक देराठूं - अजमेर के प्रदेशाध्यक्ष , श्री शंभूप्रसादजी चारण आमली - भीलवाडा के प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष , श्री भैरूलाल जी खरेलवा भोपालसागर - चित्तौडगढ के प्रदेश कोषाध्यक्ष, श्री दुर्गालाल जी बारेठ (हाळीमंगा) बोरडा - भीलवाडा के प्रदेश महासचिव, की जिम्मेदारी सौंपी गई व अपनी कार्यकारिणी गठन का अधिकार दिया। प्रदेश कार्यालय ’कुलदीप निवास जी-273 सेन्ट्रल एकेडमी स्कूल के पास बापूनगर भीलवाडा है।

संस्था के गठन के बाद पूरे जयकार समाज को एक करने के लिये प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया व राजस्थान के पन्द्रह जिलों में जिलाध्यक्ष व जिलामंत्री पदों के पदाधिकारियों की घोषणा की गई। उस वक्त चित्तौडगढ जिले के जिलाध्यक्ष श्री भैरूलाल जी चारण कपासन थे। प्रदेश महासमिति की बैठक में राज्यव्यापी सम्मेलन करने पर विचार हुआ व कपासन जिला चित्तौडगढ ने जिम्मेदारी ली व 19 व 20 जून 1993 को ऐतिहासिक प्रदेश सम्मेलन का आयोजन किया गया।

संस्था के चुनाव मातृकुण्डिया चित्तौडगढ में हुये जिसमें भैरूलाल जी चारण कपासन चित्तौडगढ प्रदेशाध्यक्ष, श्री दुर्गालाल जी बारेठ (हाळीमंगा) बोरडा - भीलवाडा के प्रदेश महासचिव व श्री महादेव जी बराला पचपीपला भीलवाडा प्रदेश कोषाध्यक्ष निर्वाचित हुये। संस्था का नाम चैमुखा महादेव राजसमन्द में फिर महासमिति व समाज में गणमान्य पदाधिकारियों द्वारा अनुसूचित जाति का लाभ को ध्यान में रखते हुये सर्व सम्मति से पुनः अखिल राजस्थान जयकार (ढोली) समाज विकास संस्था किया गया।

अखिल राजस्थान जयकार सामज विकास संस्था के चुनाव तीसरी बार उदयपुर में आयोजित हुये जिसमें भैरूलाल जी चारण कपासन चित्तौडगढ प्रदेशाध्यक्ष, श्री दुर्गालालजी बारेठ (हाळीमंगा) बोरडा - भीलवाडा के प्रदेश महासचिव व श्री दुर्गालालजी चौधरी भट्याणी अजमेर प्रदेश के कोषाध्यक्ष निर्वाचित हुये।

राजस्थान में ढोल बजाने वालों को ढोली कहा जाता है। अलग अलग समाज के ढोली होते है एवं इनकी आपस में शादी विवाह व सामाजिक आवागमन भी नही होता है। राजपूतों के दमामी, गुर्जरों के ढोली तंतकार व जाटों के ढोली जयकार शब्द से पहचाने जाते है। जाटों के ढोली समाज की अलग पहचान जयकार शब्द से होने के कारण संस्था का गठन जयकार के नाम से किया गया। ढोली शब्द के पर्याय नाम जयकार, बारेठ, खेड, जागा, भाण्ड, राणा, नंगारची, तंतकार, दमामी ये सभी है। ढोली शब्द एक है परन्तु इसी नाम की अलग अलग जातिया है। जाटों के ढोली , गुर्जरों के ढोली, राजपूतों के ढोली, मीणाओं के ढोली व अन्य ये सभी जातिया अलग है। इनकी पहचान के नाम दमामी, जयकार, तंतकार ,राणा आदि है।

जाटों के ढोली वंशावली वाचन का कार्य करने व यजमानों की प्रशंसा के कारण उनकी जय जय कार करने के कारण जयकार नाम हुआ। कुछ पुराने जानकार समाज जन जयकार नाम महाराणा द्वारा दी गई उपाधि बताते है। हमारे रावजी जगन्नाथ जी , मदनलाल जी ने हमारी पहचान व पदवी जयकार होना बताया है। सभी ढोली यदि एक साथ समूह में हो व उन्हे अलग अलग समूह में एकत्र होने के लिये कहा जाने पर दमामी , जयकार, तंतकार कहते ही अपने अपने समाज के साथ एकत्र हो जायेगें। ढोली जाति के अधिकतर सदस्य अपने नाम के साथ राव शब्द लगाते है लेकिन जाति के कालम में वास्तविक जाति ढोली का ही अंकन किया जाता है। वर्तमान में जागरूक समाज जन अपने नाम के साथ अपनी गौत्र लगाने लगे है। जयकार समाज की गौत्र इस प्रकार है। सोण्डियालका, टूटू, लाडमका, पादवा, पोरवाड़, मानका, सगदार/सिगदार, डोगा, गोरेर, ग्वालेत, रेवल, फोगा, हालीमंगा, कावां, जूटक, बराला, बागड़वा, सोपतका, पादवा, काठेड़, चौधरी, चारण, उन्दड़का, मलालां, डोडा, करसाण, चांदका, थोत्या, ढोलावत, जामका, खानका, गज, तडिंगा, मानावत, सांगावत, खरानवा, खरेलवा, हटाला, लालावत, धूलियां, खुरिया, बादलका, छमंगा, फूलफकर, लखावत, खरनाड़िया, लौड्या, भडंगा, अगेड़ी, सीरोल, ढावसी, गेगावत, राबड़ा, नारगा, हुर्रा, ढेडण, सेराण, बूड़ला, मेलिया, जावड़िया, जाजनका, भैरूका, काठा, गोच्या, मोट्या, लोहिया, व्यासका, चींगटा, धान्धड़ा, गोग्या, हाथिका, पड़पड़का, बावरा, धोकड़ा, झलदार, बिहारिका, दड़क, भगत, अल्कावत, मचवाल, चैबरका, कलफाड़, रावका, सामां, गणेर, कण्डारा, खान, जांगड़, कानूंगा, कर्मठका, गेणड़, बुड़ला, राणा, मालका, खेरवाड़, चिरोल, खण्डाडा, सांखला, मोमिया, राणा, कर्मठका, गरसोरा, असवार, चोटिया, खुर्रावत, छाता, पालना, शकरावल, शैतान, उदावत, तंवर, मोटिया, जाम, आदि है।

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